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दीवान शहाब अनवर में अर्थपूर्णता और ‘सहल मुम्तनअ’ का प्रदर्शन देखने को मिलता है: प्रोफेसर अख्तरुल वासे

वर्किंग जर्नलिस्ट क्लब के तत्वावधान में विश्व उर्दू दिवस के अवसर पर अखिल भारतीय मुशायरा और काव्य संग्रह 'दीवान शहाब अनवर' का विमोचन

नई दिल्ली । वर्किंग जर्नलिस्ट क्लब रजिस्टर्ड के तत्वावधान में विश्व उर्दू दिवस के अवसर पर गालिब इंस्टीट्यूट में अखिल भारतीय मुशायरा और काव्य संग्रह ‘दीवान शहाब अनवर’ का विमोचन किया गया। दिल्ली उर्दू अकादमी के सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता ऑल इंडिया कौमी तंज़ीम के जनरल सेक्रेटरी सैयद कमर उद्दीन ने की। पद्मश्री प्रोफेसर अख्तरुल वासेअ मुख्य अतिथि के रूप में, जबकि गालिब इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ. इदरीस अहमद और सामाजिक कार्यकर्ता मोअज्जम अली खान विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद रहे।

दीवान विमोचन के उपरान्त प्रोफेसर अख्तरुल वासेअ ने कहा कि शहाब अनवर बधाई के पात्र हैं, काफी समय बाद हमें उनके द्वारा शाइरी का दीवान देखने को मिला है। आमतौर पर कवियों के संग्रह और कुलियात सामने आते हैं, लेकिन शायरी का दीवान आना असाधारण बात है। उन्होंने कहा कि शहाब अनवर ने इस दीवान में अपने रदीफ़ (कविता का अंतिम शब्द) के अनुसार रचनाओं को संकलित किया है, इसकी खास बात यह है कि इसमें अर्थपूर्णता (मानवियत) है और सहल मुम्तनअ का प्रदर्शन भी हमें इसमें देखने को मिलता है। उन्होंने आगे कहा कि शहाब अनवर अच्छे शायर हैं, उनका ताल्लुक अमरोहा की सरज़मीन से है। अमरोहा का ज़िक्र शायरी के बिना मुमकिन नहीं हो सकता और शायरी का ज़िक्र अमरोहा के बिना मुमकिन नहीं हो सकता।

सैयद कमर उद्दीन ने कहा कि मीर, ग़ालिब और बहादुर शाह ज़फर की दिल्ली, जो उर्दू ज़बान की वजह से सभ्यता और संस्कृति का गहवारा कहा जाता है , आज उसी शहर में उर्दू की हालत अच्छी नहीं है। ऐसा नहीं है कि यहां उर्दू के संस्थान या साधन नहीं हैं, असल मामला यह है कि उर्दू हमारे घरों से उठ गई है और इसके लिए हम खुद ज़िम्मेदार हैं। उन्होंने कहा कि आज यह कहा जाता है कि उर्दू केवल मदरसों में पढ़ाई जाती है, काफी हद तक यह बात सही भी है। हमने अपने बच्चों को उर्दू, अरबी और फ़ारसी पढ़ाना बंद कर दिया है, इसलिए अब हमारी पीढ़ियों में उर्दू नहीं है, तो हमारे घरों से सभ्यता भी खत्म हो गई है। इसलिए ज़रूरी है कि हम सब लोग मिलकर अपने घरों में उर्दू को ज़िंदा करें और अपने बच्चों को उर्दू पढ़ाएं।

डॉ. इदरीस अहमद ने कहा कि खुशी की बात है कि वर्किंग जर्नलिस्ट क्लब ने यहां खूबसूरत महफिल सजाई है। मुझे यहां मेहमान बना दिया गया है, जबकि मेरी हैसियत मेज़बान की है। हर वह प्रोग्राम जो उर्दू ज़बान व अदब से ताल्लुक रखता है या जिससे उर्दू ज़बान को बढ़ावा मिलता हो, गालिब इंस्टीट्यूट इस तरह के कार्यक्रमों के लिए प्रोत्साहन और सहयोग के लिए हमेशा तैयार रहता है।

साहिबे-दीवान शहाब अनवर ने कहा कि बचपन से हम शायरों के शे’री मज़मूए (काव्य संग्रह) देखते आ रहे हैं। मेरे दोस्तों का यह तकाज़ा रहा कि मैं शे’री दीवान लाऊं और मैंने कोशिश की कि वर्णमाला (हुरूफ़-ए-तहज्जी) के साथ दीवान लाया जाए, जिस तरह दाग़ देहलवी और ग़ालिब के दीवान हमने देखे हैं। इस खूबसूरत महफिल के आयोजन के लिए मैं वर्किंग जर्नलिस्ट क्लब और उसके तमाम सदस्यों का शुक्रगुज़ार हूं।

मोअज्जम अली खान ने शे’री दीवान पर शहाब अनवर को बधाई दी और उम्मीद जताई कि जल्द ही उनका दूसरा दीवान भी सामने आएगा।

इससे पहले कार्यक्रम का आगाज़ हाफ़िज़ गुफ़रान आफ़रीदी की तिलावत-ए-कलाम पाक और क़ासिम शम्सी की नात-ए-रसूल पाक से हुआ। शुरुआती कार्यक्रम का संचालन क्लब के जनरल सेक्रेटरी मोहम्मद अहमद ने किया। क्लब के अध्यक्ष फरज़ान कुरैशी ने वर्किंग जर्नलिस्ट क्लब का परिचय और उसके लक्ष्यों एवं उद्देश्यों पर रोशनी डाली। अलहाज गुलाम मोहम्मद उर्फ राजा भाई के हाथो अन्य मेहमानों की मौजूदगी में मुशायरे की शमां रौशन की गई, जिसके बाद मुशायरे का विधिवत आगाज़ हुआ।

संचालन के कार्यभार को प्रसिद्ध नाज़िम-ए-मुशायरा मोईन शादाब ने संभाला। इस अवसर पर शहाब अनवर, डॉ. अन्ना देहलवी, मोहतरमा राशिदा बाक़ी हया, मोहतरमा अलीना इत्रत, शरफ़ नानपारवी, अहमद रज़ा फ़राज़ अमरोहवी, अमीर अमरोहवी, इक़बाल फ़िरदौसी, क़ासिम शम्सी, अमजद आतिश खतौलवी और सैफ़ुद्दीन ने अपने कलाम से श्रोताओं को आनंदित किया।

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