हम अपने राम से पुछने चले हैं यह आपके नाम पर जो हो रहा हैं क्या मर्यादित हैं ?
अभी अभी राम मन्दिर और प्राण प्रतिष्ठा के लिए एक निमंत्रण पत्र सामने आया तो मैं हैरान था जो राम घट घट में समाहित जिसके कारण सत्य और अहिंसा का प्रक्टिकरण होता हैं जो जीवन मृत्यु से परे हैं, जो दयालू हैं कृपालू हैं, जो जन जन में व्याप्त हैं उसकी प्राण प्रतिष्ठा कैसी जिसमें देश का प्रधान मंत्री यजमान हो जाये , यह कैसा होगा l
भारत का उदय समानता, सदभाव को आधार मान कर हुआ तो आज यह ऐसा क्यों , हिन्दू कौन हैं इसकी भी कोई व्याख्या संविधान में उद्धृत नही की गई यदि धारा 25 को समझने का प्रयास करें तो सिख , बौद्ध , जैन को समाहित किया तभी हिन्दू बना परंतु ये तीनों तो आयोध्या के राम मन्दिर से कुछ लेना देना ही नही , सिख को ही लेन उसका आधार गुरू ग्रंथ साहिब जिसमें छ: गुरुओं , 15 क्रांतिकारी भक्त जैसे कबीर, नामदेव, धन्ना, बेनी, रामानन्द, रविदास आदि के वचन भी समाहित हैं शायद उनकी संख्याबल देश की 140 करोड़ आबादी मान भी ली जाये तो 22 करोड़ मुस्लिम, 3 करोड़ इसायी , 5 करोड़ अन्य भी होंगे , 50 करोड़ मन्दिर जिसको सनातन कहा जा रहा हैं जाते ही नही होंगे तो 80 करोड़ तो यही होगये , इन 50 करोड़ में सिख , जैन, बौद्ध और कबीर पंथी नामदेव आदि जिनकी वाणी गुरू ग्रंथ में इसलिये सम्पादित की गई कि वे घट घट में राम की बात करते हैं तो सवाल उठता हैं कि कितनी आबादी के लिए यह प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण l
मेरा आग्रह हैं ज़रूरत गाँधी के राम की हैं “हम और आप उसे याद रखें तो भ्रम जाल में पड़ने का कोई कारण न रहे, हमारे सामने अगर कोई शंकाएं रखकर हमें उलझन में डालना चाहे तो उसे कहें कि हम किसी देहधारी राम की पूजा नहीं करते हैं , हम तो अपने निरंजन, निराकार राम को पूजते हैं l जब तक देह की दीवार के पार नहीं देख सकते तब तक सत्य और अहिंसा के गुण हममें पूर्ण रुप से प्रक्ट होने वाले नहीं
हैं ” l यह हैं गाँधी के राम , आज ज़रूरत हैं इसी को जगाने की फिर राम, रहीम, खुदा, सत श्री अकाल में अंतर नही रहेगा l
चुनाव जीते और हारे जायेंगे देश का अस्तित्व “इतिहास में बुनियादी सच दर्ज हैं कि क्ट्टरवादी मूल्यों पर अधारित कोई भी समाज ज्यादा देर तक टिका नही रह सकता , समाज टूटता हैं और राष्ट्र की बुनियादें हिल जाती हैं “l
जस्तिके V .M .Tarkunde rightly observed “It is more serious matter when the problem is ” majority communalism ” which in turn is more serious and dangerous than ‘minority communalism ‘
दया सिंघ