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मेरा जीवन संघर्ष

दया सिंघ

मेरे सामाजिक जीवन में पहला मोड़ तब आया वर्ष 1973 जब मुझे सरदार हुकम सिंघ पूर्व लोक सभा अध्यक्ष, राज्यपाल राजस्थान वे सिंघ सभा शताबदी कमेटी के अध्यक्ष ने मुझे उस कमेटी का संगठन सचिव नियुक्त किया और मुझे उस सभा में 15 वर्ष कार्यरत रहने का अवसर मिला , उनके माध्यम से मुझे त्तकालीन राजनेताओं से भी सम्पर्क स्थापित हुआ और सीधा राष्ट्रीय राजनीति को समझ प्राप्त हुआ , अब मेरे 50 वर्ष पूरे होने को हैं और जीवन सफर के 75 वर्ष l

पहली बार सरदार हुकम सिंघ ने मुझे संत हरचन्द सिंघ लोंगोवाल के पास भेजा जब चंडी गढ़ के रास्ते कहा जाता हैं 12 हिन्दुओं को बस से निकाल कर सिखों ने मारा वर्ष 1982 था asiad खेलों का वर्ष अकाली दल ने मोर्चा जल बंटवारा ताकि उस मोर्चा को निलम्बित कर इस हत्या कांड की न्यायिक जांच का रास्ता खुले परंतु संत जी ने इस पर अपनी असमर्थता जाहिर की, जब यह सूचना सरदार हुकम सिंघ को दी तो उनके मुख से निकले वाक्य थे ” 25-30हजार जाने जायेंगी और सिखों को आर्थिक हालात से रूबरू होना होगा,” उनकी मौत तो 1983 में हुई परंतु 1984 में वही सत्य
निकला l उसके बाद का मंजर याद करने में ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं l सिखों में जनून था उधर जिनकी ज़िम्मेदारी ऐसे हालात से शांति की ओर ले जाने की उन्होने इस को कीरतन और कथाओं द्वारा और भड़काने का काम किया l

फिर एक दौर चन्द्र शेखर प्रधान मंत्री बने उनके मंत्री परिषद में यशवंत सिन्नहा और सत्य प्रकाश मालवीय जिनसे मेरे अच्छे सम्बंध रहे , नतीजा जो दर्दनाक मंजर मैने देखा था उसका कोई हल निकले, मुझे अवसर मिला उसके लिए चन्द्र शेखर जी से इस पर सिख नेता जो संवेदनशील होँ उनसे बात हो, यह एक ऐसा अवसर था जिसे मैं भूल नही पाता कि यशवंत सिन्नहा के माध्यम से सरकार का भरोसा मुझ पर हो जाये , बैठक हुई , जब कोई बात बनती नजर न आयी तो मैने माननीय प्रधान मंत्री चन्द्र शेखर जी को कहा ” why not the prime minister to announce , prime minister ऐस ready to talk with anyone on any issue ” वह इस बात पर राजी हो गये परंतु क्या पता था कि उस को सबोताज करने के लिए उनको ही इस्तीफा देना पड़ा परंतु वह हुआ बहाना बना राजीव गाँधी की सुरक्षा में सेंध मारी जैसा खबरों के माध्यम से जनता के बीच प्रसारित हुआ , उसके बाद जो सिख पंजाब से बाहर उनको समझने के लिए दिल्ली तो पटना साहिब की यात्रा की , महसूस हुआ गलतियां तो हम करें दोषी कहें शैतान को l

एक सेमिनार में मैने बोलना था उस में मुख्य अतिथी प्रो. शेर सिंघ पूर्व केन्द्रिय मंत्री, आर्य समाज के नेता और हरियाना की स्थापना के संघर्ष के शीर्ष नेता , हालांकि उसका आयोजन आर्य समाज ने किया था तो मैने बोलते हुए प्रो शेर सिंघ ध्यान आकर्षित करते हुए यह कह दिया “पंजाब का मसला सिख और आर्य की आपसी विरोध का नतीजा हैं , क्या कोई रास्ता निकल सकता हैं कि सिख और आर्य इस दुबिधा को तोड़ने के लिए बैठक कर कोई रास्ता निकालें ” हालांकि मैने खालसा और आर्य के अर्थ भी करते हुए याद दिलाया कि सिंघ सभा लहर 1878 और आर्य समाज लाहौर की स्थापना 1975 में के मूल में सिख ही थे भायी जवाहर सिंघ, प्रो गुरमुख सिंघ और गियानी दित्त सिंघ l यहीं से शुरुआत हुई आर्य सिख चेतना मंच की मुझे याद हैं गुरू गो बिन्द सिंघ की जन्म स्थली पटना साहिब से कर्म स्थली आनन्दपुर साहिब की यात्रा जिसका समापन 2 जनवरी 1998 को भायी मति दास चौक, शीश गंज गुरुद्वारा के सामने दिल्ली में किया गया , स्वामी अग्निवेश के शब्द ” आज तक धर्मों को जोड़ने की बात हुई यह पहला समय जब मुद्दों को लेकर एक मत आवाज उठी वे थे पाखण्डमुक्त, जातिवाद मुक्त, शोषण मुक्त, नशा मुक्त और भय मुक्त नतीजा भारत सरकार ने उसके लिए एक करोड रूपये का प्रावधान गुरुकुल कांगडी विश्व विद्यालय हरिद्वार में गुरू गो बिन्द सिंघ चेयर की स्थापना के लिए किया अफसोस यह हो न सका , उससे महोल ऐसा सृजित हुआ कि दया नन्द महिला महा विद्यालय कुरुक्षित्र के प्रांगण में गुरू अरजन की 400 वें वर्ष को समर्पित “हक ए अमन ” संगोष्ठी का आयोजन जिस में डा .ए आर किद्वयी राज्यपाल हरियाना, सुरजीत सिंघ बरनाला राज्यपाल तामिल नाडू ,सीस राम ओला केन्द्रिय मंत्री, साहिब सिंघ वर्मा पूर्व मुख्य मंत्री दिल्ली, प्रो शेर सिंघ, सिखों की तरफ से मंजीत सिंघ क्लकत्ता SGPC के पदाधिकारी शामिल हुए जिसका संयोजक की ज़िम्मेदारी भी मुझे सौंपी गई , उससे यह अहसास हुआ कि सिख कड़ी हैं भारत को जोड़ने की यही गुरुओं द्वारा स्थापित मुल्य भी l

अन्ना आंदोलन मन मोहन सिंघ को बदनाम करने का मुद्धा बना india against corruption जब संघ को यह महसूस हुआ कि सिख और मुस्लिम फिर से कांग्रेस की ओर बढ़ गया है , यह उस के मंतव्य को पूरा करने के लिए रोड़ा हैं , 2011 आते आते ऐसे हालात बनने लगे कि रोज कोई पटाका फूटता नाम आता किसी सिख अथवा मुस्लिम संगठन का , तो मुझे कयी पत्रकार दिल्ली में मिले तो मुद्धा था इस हालात से कैसे निजात मिले तो मैने सिख , मुस्लिम और हिन्दू के आपसी समझ पैदा करने हेतु गुरू नानक के उसी स्थान वेयीं नदी के तट कपूर्थला सुलतान पुर लोधी पंजाब से जहां से उन्होने प्रथम यात्रा “न को हिन्दू न मुसलमान अल्हु राम के पिंड प्राण ” से बनारस गंगा नदी तक l इस यात्रा में त्तकालीन अध्यक्षया राधा भट्ट भी शामिल हुई , यात्रा के दौरान कुरुक्षेतर , देवबन्द, बरेली, लखनऊ, आयोध्या , आजम गढ़ आदि से होते हुए समापन की और अपना आंकलन त्तकालीन प्रधान मंत्री मन mohn सिंघ के समक्ष प्रस्तुत किया ज़िसकी प्रशंसा तो की परंतु समय रहते उस अनुसार कार्यवाही की होती तो राजनीति के आयाम यह न होते ज़िससे देश रूबरू हो रहा हैं l

चिंता इस बात की हैं कि कहीं देश फिर से उसी भंवर जाल में न फंस जाये l विश्व के हालात भी यही संकेत दे रहे हैं l

दया सिंघ
9873222448

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