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मैं केजरीवाल के उस दौर की बात नहीं कर रहा कैसे I I T खड़गपुर में दाखिला मिला , उसके पारिवारिक सम्बंध भजन लाल से कैसे थे , किस प्रकार वह अरुणा राय की RTI की टीम का हिस्सा बना और न उसके मैग्सेसे अवार्ड, मिला और मैं इस बात की ओर नहीं जाना चाहता उसकी study leave और उसके बाद के समय को , कैसे लम्बा समय दिल्ली में ही सरकारी पद पर गुजार दिया , हां यह ज़रूर चर्चा करने का प्रयास करूंगा कि अन्ना आंदोलन के पीछे का सच क्या है l
मनमोहन सिंह भारत के प्रधान मंत्री की 145 सांसदों के साथ 2004 में शपथ ले ली, उस दौर में अनेकों लोक हित के कानून अस्तित्व में आ गये , देश की विकास दर तेजी से बढ़ने लगी , सिख और मुस्लिम जो कॉंग्रेस के कुकृत्यों के कारण खफा थे वे भी मनमोहन सिंह की ओर बढ़ गये , 75 वर्ष में मेरे ज्ञान में नहीं जो प्रधान मंत्री वह भी सिख संसद पटल पर 1984 के लिये माफी मांग ले , यह मनमोहन सिंह की हिम्मत और साहस था कि इतने कम सासंदो से प्रधान मंत्री कर सकेगा, किसी ने सोचा भी नहीं होगा, नतीजा 2009 का चुनाव तो एक लिटमस टेस्ट था क्योंकि अमेरिका के साथ परमाणु संधि से वामपंथ भी बाहर , विडम्बना तो यह 2008 में लेहमन ब्रदर्स के कारण आर्थिक मन्दी का दौर भी विश्व भर में, ऐसे समय चुनाव को साधना जब सामने हिन्दू हृदय लाल कृष्ण अडवाणी भाजपा की ओर से उमीदवार उससे भी बढ़ कर सोनिया गांधी का अपनी फोटो को कागज से ढक कर मनमोहन सिंह पर भरोसा जताना भी कॉंग्रेस के लिये आसान नहीं था परंतु मनमोहन सिंह बिना रुके , बिना झुके आगे बढ़ गये नतीजन 145 से बढ़कर 206 हो गयी, और अडवाणी बुरी तरह हारे , बस यहां से संघ को लगा यदि मनमोहन सिंह की कारगुजारी यही रहीं तो जिनके नाम आतंकवादी घटनाओं में लिप्त पाये जाने लगे तो मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ उसे बदनाम करने लिये शायद संघ के पास केजरीवाल जैसा व्यक्ति था ही उसने उसको आगे बढा दिया , मुद्धा बना लोकपाल का ताकि भ्रस्टाचार के मुद्दे को उठा दिया जाए, अन्ना की टोपी से उसे दूसरा गांधी पर भी कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता क्योंकि गांधी जनों ने गांधी को, समाजवादियों ने राम मनोहर लोहिया को और जे पी के लोगों ने जय प्रकाश नारायण के विचारों की धज्जियाँ उड़ा दी , पूरे विश्व में पूरे भारत को ही भ्रष्टाचारी साबित करने में कोई कोर कसर न छोड़ी , यह भी नहीं सोचा एक ऐसा व्यक्ति प्रधान मंत्री जो किसी सुख सुविधा से परे देश हित में लगा हो, अफसोस तो अकाली दल पर जो सिख प्रतिनिधि होने का दम तो भरता परंतु वह भी उसी पाले में , कॉंग्रेस में संघी स्लीपर सैल भी उन्हीं के साथ हो लिया ताकि संघ पर कोई आँच न आने पाये , अचानक 26/11 की उस आतंकवादी घटना का हो जाना जिससे करकरे का चले जाना जो उन पर कार्यवाही करने की रपट त्ययार कर रहा था जो आतंकवादी घटनाओं में लिप्त थे उसी को मार दिया गया , यह क्या संदेश देता है, मैं आप पर छोड़ता हूं , यहीँ बस नहीं सरकारी तंत्र भी उसी का हिस्सा बन जाये बाड़ ही खेत को खाने पर तुल जाये तो क्या हालात होंगे , इसको समझा जा सकता है, उसी स्लीपर सैल ने राहुल गांधी से अध्यादेश को फड़वा कर कचरे की टोकरी में डाल दिया , यहीँ बस नहीं उसी चौकड़ी ने राहुल को शिव भक्त, जनेऊ धारी ब्राह्मण और मन्दिर मन्दिर घुमने पर लगा दिया , गांधी विचार धारा को ही तिलांजलि दे दी गयी नतीजा जो सिख और मुस्लिम मनमोहन सिंह के कारण कॉंग्रेस की ओर बढ़ा वही इन हरकतों को देखते हुए कॉंग्रेस को ही अलविदा करने पर मजबूर हो गया , अन्ना आंदोलन को इतनी हवा दे दी गयी उन दिनों कोई भी फ्टाका फूटता किसी email के जरिए यह दिखा दिया जाता कि किसी मुस्लिम संगठन ने जिम्मेदारी ले ली और क्यियों को पकड़ कर जेल में ठूँस दिया जाता, उसी दौरान मैने वेयीं नदी पंजाब से गंगा नदी गंगा घाट 15 -28 अप्रैल 2011 तक की यात्रा गुरू नानक के उसी पवित्र स्थान जहां से गुरू नानक ने आरम्भ की थी की , बहन राधा भट्ट तत्कालीन अध्यक्षा गांधी शांति प्रतिष्ठान भी उस यात्रा का हिस्सा ही नहीं बल्कि अमृत्सर सरोवर से पवित्र जल लिया जिसे गंगा में बनारस में जब समाहित किया जा रहा था तो अमर उजाला में उसे इस प्रकार पेश किया गया ” जिस प्रकार जल को जल में समाहित से उसे अलग नहीं किया जा सकता इसी प्रकार इस यात्रा से दिलों को दिलों से अलग नहीं किया जा सकता ” यही इस यात्रा की उपलब्धि रही , इसकी समीक्षा 06.05.2011 को प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के समक्ष प्रस्तुत की जिन्होंने अपने पत्र 03.06.2011 को इस की प्रशंसा करते हुए हमारा उत्साहवर्धन किया , ऐसे हालात केजरीवाल के कारण पैदा किये गये , अब बारी आयी उसी विचार की जो संघ चाहता था कि प्रथम तौर पर दिल्ली को कॉंग्रेस मुक्त किया जाये 2013 का दिल्ली चुनाव यही बता रहा था जिस दौरान थ्री विलरों पर लिखा था केन्द्र में मोदी और दिल्ली में केजरीवाल , उन्हीं दिनों मृणाल पांडे विदुषी और हिन्दोस्तान की संपादिका की टिप्पणी ” संघ को एक ऐसे व्यक्ति की तलाश थी जो स्वच्छंदता से संघ के एजेंडा को पूरा करे और उसके राज में कोई धर्म के नाम पर यह न कह सके कि वह वंदे मात्रम नहीं गायेगा ” मोदी जी का गत दस वर्षों का इतिहास यही बताता है गोलवालकर के अनुसार 80 फीसद आबादी को अनाज का मोहताज बना दो पूरी संपत्ती पर दो तीन साहूकारों का कब्जा करवा दो , यही तो हुआ l
उपरोक्त से यह तो साफ हो जाता है मोदी और केजरीवाल एक सिक्के के दो पहलू , क्योंकि जो वोट मोदी के खिलाफ उसको केजरीवाल की झोली में डलवाया जाये, इसीलिए केजरीवाल का कोई भी भाषण हो उस में मोदी के खिलाफ जोर जोर से ताकि वही वोट जो काँग्रेस का था वही केजरीवाल की ओर , जिससे दिल्ली कॉंग्रेस मुक्त कर दी गयी, दूसरी ताकत सिख थे अर्थात पंजाब से सिखों की राजनीति जिसका प्रतिनिधित्व शिरोमणि अकाली दल उसे भी बदनाम किया जाए वही 2017 के चुनाव में संघ को अहसास था कि जो वोट भाजपा को नहीं वही केजरीवाल को भुगत जाये , वही हुआ 2022 के आते आते कॉंग्रेस और शिरोमणि अकाली दल भी राजनीति से ही बाहर कर दिये गये l
तब जानेगो जब उघडेगो पाज वही 2025 में उघड़ ही गया दिल्ली का चुनाव यही बताता है , केजरीवाल ही aap और aap ही केजरीवाल अब कोई संगठन तो है नहीं, मुझे याद है सिख कत्लेआम के बाद राजीव गांधी को 413 सांसद मिले और भाजपा को 2, मैंने तब भी कहा था कॉंग्रेस को संघ ने झटक लिया इसलिए सत्ता सीन चाहे राजीव था पर सत्ता संघ के हाथ में , जब तक उसकी ज़रूरत थी तब तक , जैसे ही ज़रूरत न रही जो हालात देश के हुए वह सबके सामने राजीव को बोफोर्स के हौए के दबाव में भ्रष्टाचारी साबित करने में देर न की, एन उसी तरह के हालात केजरीवाल के , कॉंग्रेस के पास उसकी पृष्टभूमि थी केजरीवाल के पास ठन ठन गोपाल l
आगे आगे देखना होता है क्या
दया सिंह
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