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असम के परिसीमन को लेकर इतनी जल्दी क्यों

सुषमा रानी

नई दिल्ली 7जुलाई ।आम आदमी पार्टी ने चुनाव आयोग द्वारा असम के परिसीमन को लेकर लाए गए ड्राफ्ट में भारी विसंगतियों पर आपत्ति जताई है। “आप” के उत्तर-पूर्वी राज्यों के प्रभारी राजेश शर्मा का कहना है कि चुनाव आयोग ने इसमें असम की मौजूदा जनसंख्या और भौगोलिक स्थितियों का बिल्कुल ख्याल नहीं रखा है। इसके खिलाफ पूरे असम में आंदोलन हो रहा है। ड्राफ्ट के मुताबिक कई जगहों पर एक ही गांव को अलग-अलग विधान सभाओं में बांट दिया गया है। साथ ही, वर्तमान में असम की जनसंख्या 3 करोड़ 60 लाख है। इसके बावजूद आयोग ने 2001 की जनगणना के आधार पर परिसीमन का मसौदा पेश किया है। “आप” की मांग है कि चुनाव आयोग परिसीमन मसौदे की कमियों को दूर करे या फिर 2026 में होने वाले पूरे देश में परिसीमन के साथ करे। ऐसा न करने पर हम असम की जनता के साथ मिलकर इसके खिलाफ लड़ाई लड़ेंगे।

आम आदमी पार्टी की मुख्य प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ ने उत्तर-पूर्वी राज्यों के प्रभारी राजेश शर्मा के साथ शुक्रवार को दिल्ली स्थित पार्टी मुख्यालय में असम के परिसीमन को लेकर चुनाव आयोग द्वारा लाए गए मसौदे की खामियों को लेकर प्रेसवार्ता किया। इस दौरान असम के “आप” प्रदेश संयोजक भबेन चौधरी भी मौजूद रहे। आम आदमी पार्टी की मुख्य प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ ने शुक्रवार को प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए कहा कि चुनाव आयोग द्वारा लाए गए परिसीमन के मसौदे से ऐसा प्रतीत होता है कि उसे तैयार करते समय असम की बढ़ती जनसंख्या और वहां की भौगोलिक स्थिति का ख्याल नहीं रखा गया है।

वहीं, प्रभारी राजेश शर्मा ने कहा कि 20 जून 2023 को चुनाव आयोग ने असम के परिसीमन को लेकर एक मसौदा प्रकाशित किया। उस मसौदे में जिस तरीके से विधानसभाओं और लोकसभाओं का सीमा निर्धारण किया गया है, वो काफी विसंगति पूर्ण है। मसौदे में बहुत सारी गलतियां है। जनसंख्या वृद्धि और विभिन्न जाति, जनगोष्ठी के अधिकारों का ध्यान सीमांकन में नहीं रखा गया है। असम में पहला परिसीमन 1971 की जनगणना के आधार 1976 में हुआ था। उस समय असम की जनसंख्या 1 करोड़ 46 लाख थी। उसके बाद 2001 और 2011 में जनगणना हुई। किन्हीं कारणों से 2021 में जनगणना नहीं हुई। मगर चुनाव आयोग ने इस परिसीमन के लिए 2001 की जनगणना आधार बनाया है। 2023 में असम की जनसंख्या करीब 3 करोड़ 60 लाख है। 1976 में सीमा निर्धारण के दौरान असम की जनसंख्या 1 करोड़ 46 लाख थी। करीब ढाई गुना जनसंख्या बढ़ने के बावजूद भी असम में विधानसभा की 126 सीटें और लोकसभा की 14 सीटें ही हैं। केवल विधानसभाओं की बाउंड्री को बदलने के लिए इस तरीके का सीमा निर्धारण करना गलत प्रतीत होता है।

“आप” के उत्तर पूर्वी राज्यों के प्रभारी राजेश शर्मा ने कहा कि जम्मू कश्मीर में सीमा निर्धारण 2011 की जनगणना के आधार पर हुआ था। किसी भी राज्य में जब विधानसभाओं और लोकसभाओं की सीमा निर्धारण की जाती है, तो नवीनतम उपलब्ध जनगणना के आधार पर होती है। 2001 की जनगणना के आधार पर सीमांकन करने का कोई कारण नजर नहीं आता है। परिसीमन बढ़ी जनसंख्या और निर्वाचन क्षेत्रों की भौगोलिक स्थिति पर किया जाना चाहिए। मगर असम के मामले में न बढ़ी जनसंख्या को ध्यान में रखा गया और न भौगोलिक स्थिति को ध्यान में रखा गया है। 27 दिसंबर 2022 को चुनाव आयोग ने असम के परिसीमन के लिए एक घोषणा की थी। आयोग ने कहा गया था कि परिसीमन प्रक्रिया के दौरान आयोग भौतिक विशेषताओं, मौजूदा सीमाओं और प्रशासनिक इकाइयों का ध्यान रखें। लेकिन चुनाव आयोग ने अपने ही दिशा निर्देशों का कहीं न कहीं पालन नहीं किया है।

“आप” के उत्तर पूर्वी राज्यों के प्रभारी राजेश शर्मा ने कहा कि असम में दो विधानसभा में कम करके 13 विधानसभा कर दी गई हैं। इस तरह से असम के लोगों के अधिकारों का हनन किया गया है। आने वाले दिनों में यह स्थानीय लोगों के लिए बहुत बड़ी समस्या खड़ी करेगा। एक ग्राम पंचायत को 100-150 किलोमीटर दूर सेटेलाइट एरिया से विधानसभाओं को कैसे संचालित किया जाएगा। यह भी एक बहुत बड़ी समस्या है। सवाल यह है कि जब पूरे देश में 2026 में परिसीमन होना है तो इस वक्त असम में परिसीमन करने की इतनी जल्दबाजी क्यों है? इसे देखकर कहीं न कहीं ऐसा लगता है कि सत्तारूढ़ भाजपा को फायदा पहुंचाने की कोशिश की गई है।

राजेश शर्मा ने कहा कि इस परिसीमन मसौदे को तैयार करते समय असम के लोगों के साथ भेदभावपूर्ण बर्ताव किया गया है। मसौदे को जारी करते समय असम की जाति और जनगोष्ठी के बारे में ध्यान नहीं रखा गया है। असम के अदंर विभिन्न प्रकार की जातियों के लोग बसे हुए हैं, उन सभी लोगों के अधिकारों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। असम में कहीं चाय के बगान में काम करने वाले आदिवासी रहते हैं तो कहीं अहम, मोरान, बोडो, रावा और कई जनजातियां हैं। इन सभी जनजातियों के अधिकारों की रक्षा के लिए इस तरह से सीमाओं का निर्धारण होना चाहिए कि सभी को जनप्रतिनिधित्व मिले। मगर चुनाव आयोग द्वारा जारी मसौदे में इसकी कमी दिखाई देती है।

“आप” के उत्तर पूर्वी राज्यों के प्रभारी राजेश शर्मा ने कहा कि इस विषय में हम पहले भी चुनाव आयोग को पत्र लिख चुके हैं और आज हम एक बार फिर चुनाव आयोग को पत्र के जरिए सारी कमियों से अवगत करा कर आए हैं। चुनाव आयोग द्वारा परिसीमन को लेकर की जाने वाली जनसुनवाई में हम अपना पक्ष रखेंगे। हमारी मांग है कि चुनाव आयोग इस परिसीमन के मसौदे को सिर्फ असम में न लाकर इसे 2026 में ही लाए जब इसे पूरे देश में लागू किया जा रहा है। या फिर इस मसौदे की सारी कमियों को दूर करके जनजातियों के अधिकारों को सुनिश्चित करते हुए इसे लागू करे। जहां जनसंख्या के अनुपात में जहां जितनी सीटें बढ़नी चाहिए उतनी बढ़ाई जाएं। इसी तरह से अपर असम में अहम जनजाति की शिवसागर जिले में जितनी सीटें कम हुई हैं, उसे बढ़ाए और बाकी जनजातियों की जितनी सीटें कम हुई हैं उन्हें ठीक करे, यही हमारा मुख्य मुद्दा है। आज शिवसागर, आंगड़ी, लहंगवा, सरभोग और पूरे असम में इस परिसीमन मसौदे का विरोध हो रहा है। आम आदमी पार्टी की मांग है कि असम के लोगों द्वारा जो विरोध किया जा रहा है, उसे सरकार और चुनाव आयोग गंभीरता से सुने और संज्ञान लेते हुए असम के लोगों के लिए एक सही व अच्छा मसौदा लेकर आए।

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