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ईद-उल-अज़हा के अवसर पर कुर्बानी को जीव हत्या का नाम देकर कहीं मजहब को टारगेट करना तो नहीं।

जावेद हुसैन (ब्यूरो चीफ यूपी)

ईद उल अजहा यानी बकरा ईद यह त्योहार पूरे विश्व में मनाया जाता है। मजहबे इस्लाम में कुर्बानी का हुक्म दिया गया है लेकिन कुछ असामाजिक तत्व और हिंदूवादी लोग लगातार इसका विरोध करते आए हैं।उनके अनुसार यह जीव हत्या है और इसपर रोक लगनी चाहिए।भाजपा के कुछ नेता भी लगातार कुर्बानी के खिलाफ बयान देते रहे हैं।हमेशा सुर्खियों में रहने वाले भाजपा से लोनी विधायक नंदकिशोर गुर्जर ने भी कुर्बानी को लेकर विवादित बयान दिया था जिसके बाद मुस्लिम समुदाय की तरफ से इसकी आलोचना की गई।
मुस्लिम धर्मगुरुओं के अनुसार यह मजहबी मामला है इसपर किसी को दखल देने की कोई आवश्यकता नहीं है यदि इसमें कोई दखल अंदाजी करता है तो वह उनकी आस्था समेत मजहब के कानून पर सवाल उठता है।भारत एक लोकतांत्रिक देश है जिसमे सभी धर्मो का सम्मान किया जाता है और सभी समुदायों को अपने धर्म के अनुसार जीने का अधिकार है लेकिन हर साल जब बकरा ईद करीब आती है तो तमाम हिंदूवादी संगठनों द्वारा कुर्बानी को लेकर विवादित बयान दिए जाते हैं।

क्या है कुर्बानी की असली हकीकत?

इस्लाम धर्म के अनुसार हज़रत इस्माईल का अभी बचपन था। अभी उनकी मां हज़रत हाजरा भी मौजूद हैं।हज़रत इब्राहीम ने एक रात यह ख़्वाब देखा कि ख़ुदा उनसे कहता है कि क़ुरबानी करो।जब वह नींद से जागे सुबह आपने ऊँट क़ुरबान किए।

दुसरे दिन रात में फिर आपने वही ख़्वाब देखा कि कुरबानी का उन्हें हुक्म दिया जा रहा है, जब बेदार हुए तो आप ने ख़ुदा के नाम पर दोबारा सौ ऊंट क़ुरबान किये।इसके बाद तीसरी रात को फिर आपने वही ख़्वाब देखा।लेकिन इस ख्वाब में अल्लाह कहता है ए इब्राहिम जो तुम्हारा सबसे अजीज हो जिससे तुम सबसे ज्यादा मुहब्बत करते हो उससे कुर्बान कर उस वक़्त आप बहुत परेशान हुए कि आख़िर इस ख़्वाब का क्या मतलब है।आपने समझा, शायद यह इशारा इस बात कि तरफ़ है कि में आपने प्यारे बेटे इस्माईल को खुदा के नाम पर क़ुरबान करूं। हजरत इब्राहीम ने हज़रत इस्माईल से कहा,ऐ बेटे, मैं तुझे ख़ुदा कि राह में क़ुरबान करना चाहता हूं। ख़्वाब में मुझे इसका हुक्म हुआ है, तुम्हारी अपनी क्या राय है ?

हज़रत इस्माईल ने जवाब दिया, बाबा “आप कुछ फिंक्र न कीजिए और बेझिझक मुझे क़ुरबान कर दीजिये।ख़ुदा ने तो चाहा आप मुझे सब्र वाला पायेंगे |
बेटे को राज़ी पाकर बाप ने कुरबानी कि ठानी।

हजरत इस्माईल ने कहा बाबा मुझे कुर्बान करने से पहले आप अपनी आखों को पट्टी बांध लेना कहीं मुझे कुर्बान करते वक्त आपका दिल न पसीज जाए की जिसके कारण कुर्बानी में कोई बाधा न आए।हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने हज़रत इस्माईल को ज़मीन पर लिटाया। छुरी हज़रत इस्माईल के गले पर चलायी, लेकिन ख़ुदा कि क़ुदरत से हज़रत इस्माईल महफूज़ रहे और आवाज़ आयी, ऐ इब्राहीम, तूने ख़्वाब सच कर दिखाया तूने मुझे राज़ी कर दिया है।

उस वक़्त हज़रत जिब्रील जन्नत से एक दुम्बा ले आये और उसी को इस्माईल कि जगह क़ुरबान किया गया।इसीलिए हज़रात मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व् सल्लम ने कहा कि कुरबानी इब्राहीम कि सुन्नत है।

इसके बाद आज तक मुसलमान इस बात पर अमल करते हुए अपनी हैसियत के मुताबिक कुर्बानी करते हैं।

इससे संबंधित गैर मुस्लिम के मुसलमानों से कुछ सवाल भी हैं।क्या सवाल है आइए आपको बताते हैं।

सवाल:- अगर उस दिन इस्माईल की कुर्बानी हो जाती तो आप क्या करते।
जवाब:मुस्लिम धर्मगुरु कहते हैं यदि ऐसा होता तो हम बिना संकोच किए अपनी औलादों को कुर्बान कर देते अल्लाह के लिए हम अपना पूरा खानदान,दौलत सब कुछ कुर्बान करने को तैयार हैं।

सवाल:-क्या इस तरह किसी जीव की धर्म के नाम पर कुर्बानी करना जीव हत्या नही है।
जवाब:मौलाना कहते हैं यदि ऐसा होता तो जब हजरत इब्राहिम हजरत इस्माईल की कुर्बानी कर रहे थे तो अल्लाह जिब्रिल के जरिए डुंबा न भेजता।
सवाल:-लेकिन यह परंपरा बदली भी तो जा सकती है!
जवाब:-नही अल्लाह और कुरान का हुक्म कभी नही बदल सकता।अल्लाह हजरत इब्राहिम की परीक्षा ले रहा था जिसमे उन्होंने सफल हो कर दिखाया की अल्लाह का कानून सबसे ऊपर है जिसको कोई बदल नही सकता।

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