पूर्वांचल विषेश: काशी के इस मुसलमान ने गंगाजल व मिट्टी से कपडे पर लिख दिया पूरी भगवत् गीता
स्टार न्यूज टेलिविज़न
उत्तर प्रदेश के वाराणसी में गंगा-जमुनी तहजीब का नायाब नजारा देखने को मिला है. गंगाजल की स्याही से इरशाद अली ने कपड़े पर ‘भागवत गीता’ लिखी है.
इसे लिखने के लिए इरशाद ने गंगा किनारे की मिट्टी का इस्तेमाल किया है. इससे पहले इरशाद कुरान शरीफ, हनुमान चालीसा भी लिख चुके हैं. इरशाद अली का अगला लक्ष्य भारत के संविधान को इसी तरह लिखने का है.दरअसल, वाराणसी के एक मुस्लिम व्यापारी ने सफेद सूती कपड़े की बड़ी चादर पर गंगा की मिट्टी और पानी का इस्तेमाल कर सुलेख में श्रीमद भगवद् गीता लिखी है।
इरशाद ने कहा, जब मैं 14 साल का था, तब मैंने शव को दफनाने से पहले कफन पर डालने के लिए आधे मीटर के कपड़े के टुकड़े पर शाहदतेन लिखना शुरू किया था. शाहदतेन का शाब्दिक अर्थ है विश्वास की घोषणा. लिखने का जुनून और बढ़ गया, और मैंने पवित्र कुरान को कपड़े पर लिखने का फैसला किया।
उन्होंने कहा कि गंगा की मिट्टी, आब-ए-जमजम (जमजम पानी), जाफरान और गोंद से बनी स्याही से कुरान के सभी 30 पैराग्राफ को पूरा करने में लगभग छह साल लग गए. इस भारी-भरकम किताब की बाइडिंग के लिए मशहूर बनारसी सिल्क ब्रोकेड का इस्तेमाल किया गया है. श्रीमद्भगवद् गीता को उसी शैली और आकार में लिखने के लिए उन्होंने गंगा जल के साथ गंगा मिट्टी और गोंद से स्याही तैयार की. उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता को समझने के लिए संस्कृत सीखी. उन्होंने कहा, मैंने एक संस्कृत अनुवाद पुस्तक खरीदी और भाषा सीखने के लिए स्थानीय पुजारी की मदद ली. उन्होंने सूती कपड़े के टुकड़ों पर विष्णु शस्त्रनाम, हनुमान चालीसा और राष्ट्रगान भी लिखा है. दिलचस्प बात यह है कि उनका पूरा परिवार लेखन के इस जुनून से जुड़ा है.
उन्होंने कहा कि इस काम में पत्नी, दो बेटियों और दो बेटों समेत परिवार के सभी सदस्य उनका साथ देते हैं. कपड़े की चादरें उनकी पत्नी और बेटियों तैयार करती हैं, जबकि स्याही उनके बेटे तैयार करते हैं.
राकेश की रिपोर्ट