
घिच पिच
बाप बेटे के रिश्तों पर चंडीगढ़ की गलियों से निकली एक दिल छूने वाली फिल्म
नई दिल्ली।चंडीगढ़ की पृष्ठभूमि पर आधारित और किशोरों के मनोवैज्ञानिक उलझनों को उजागर करती फ़िल्म ‘घिच पिच’ 8 अगस्त 2025 को पूरे भारत में सिनेमाघरों में रिलीज़ हो रही है। टेक उद्यमी से फिल्म निर्देशक बने अंकुर सिंगला की यह पहली फीचर फिल्म है, जिसे पहले ही Cinevesture International Film Festival (CIFF) में वर्ल्ड प्रीमियर पर भारी सराहना मिली है।
IMDB पर मिली 9.7 की असाधारण रेटिंग इस बात का संकेत है कि फिल्म दर्शकों को भावनात्मक रूप से गहराई से छू रही है।
कहानी:
1990 के दशक के उत्तरार्ध में बसे चंडीगढ़ की गलियों में घूमती यह कहानी तीन किशोर लड़कों की है—गौरव, गुरप्रीत और अनुराग—जो दोस्ती, विद्रोह और अपने सख़्त पिता के साथ तनावपूर्ण रिश्तों के बीच अपने अस्तित्व को तलाशते हैं।
फ़िल्म में दिखाया गया है कि कैसे एक पीढ़ी अपनी पहचान, अपेक्षाओं और भीतर दबी भावनाओं के साथ जूझती है।
फिल्म का नाम ‘घिच पिच’ क्यों?
‘घिच पिच’ एक आम हिंदी शब्द है जो मानसिक या भावनात्मक उलझन को दर्शाता है—यह फिल्म के किरदारों की मन:स्थिति का सटीक रूपक है।
पूरी फिल्म चंडीगढ़ में ही शूट की गई है और यह शहर केवल एक पृष्ठभूमि नहीं, बल्कि एक मूक किरदार की तरह उभरता है—कैपिटल कॉम्प्लेक्स की आर्किटेक्चरल ठोस बनावट से लेकर रोज़ गार्डन, सुखना लेक और गेहरी रूट की मासूमियत तक।
निर्देशक की ज़ुबानी:
अंकुर सिंगला, जो पहले एक सफल टेक स्टार्टअप चलाते थे जिसे उन्होंने अमेज़न को बेचा, अब फिल्म निर्देशक बनकर सामने आए हैं।
उनका कहना है कि “‘घिच पिच’ मेरे बचपन की यादों, उस दौर की पेरेंटिंग स्टाइल और उन अनकही भावनाओं से प्रेरित है जो लड़के अक्सर चुपचाप अपने भीतर छिपाए रखते हैं। लॉकडाउन ने मुझे यह सोचने का मौका दिया कि मैं क्या करना चाहता हूं—और जवाब था: सिनेमा के ज़रिए इंसानी कहानियां सुनाना।”
कास्ट और किरदार:
शिवम कक्कड़ (गौरव अरोड़ा) — तेज़-तर्रार, गुस्सैल लेकिन पिता से भावनात्मक रूप से जुड़ा लड़का। फ्लेम्स और इंदू की जवानी के लिए पहचाने जाने वाले शिवम की यह पहली प्रमुख फ़िल्म भूमिका है।
कबीर नंदा (गुरप्रीत सिंह) — एक संवेदनशील सिख किशोर, जो क्रिकेट और प्रेम के बीच झूलता है, साथ ही अपने माता-पिता की उम्मीदों से जूझता है। किरदार के लिए कबीर ने क्रिकेट सीखा और पग पहनने की ट्रेनिंग ली।
आर्यन राणा (अनुराग बंसल) — पढ़ाई में अव्वल लेकिन आत्म-संदेह से घिरा किशोर, जो अपने सख़्त पिता की अपेक्षाओं के बोझ तले दबा है। यह आर्यन की पहली फिल्म है।
स्व. नितेश पांडे (राकेश अरोड़ा) — एक सौम्य और भावनात्मक रूप से परिपक्व पिता की भूमिका में नज़र आएंगे। खोसला का घोंसला और ओम शांति ओम जैसी फिल्मों के अभिनेता नितेश पांडे की यह आख़िरी फीचर फ़िल्म है।