कुंभ से पहले शाही स्नान के नाम को लेकर बवाल, जल्द शाही स्नान का नाम बदलकर हो अमृत स्नान – मां ध्यानमूर्ति महाराज
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन होने वाला है। अगले साल की शुरुआत के साथ संगम नगरी में महाकुंभ का आगाज होगा। हालांकि महाकुंभ 2025 से पहले शाही स्नान विवादों में घिर गया है। धर्मगुरु मां ध्यानमूर्ति जी महाराज ने इसका नाम बदलने की मांग की है। ध्यान मूर्ति जी का कहना है कि शाही स्नान का नाम बदलकर सनातन धर्म से जुड़ा कोई नया नाम रखना चाहिए।
*शाही स्नान क्या है?*
दरअसल साधु-संतों में शाही स्नान का काफी महत्व है। हर महाकुंभ और अर्धकुंभ में शाही स्नान का आयोजन किया जाता है। इस दौरान साधु-संतों की भव्य परेड निकलती है, जिसके बाद वो संगम में डुबकी लगाकर मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करते हैं। साधु, संतों और नागा बाबाओं के कुल 13 अखाड़े इस शाही स्नान में हिस्सा लेते हैं। माघ महीने में चलने वाले महाकुंभ की शुभ तिथियों के अनुसार सभी 13 अखाड़ों को शाही स्नान का दिन और समय आंवटित किया जाता है।
*कैसे शुरू हुई शाही स्नान की परंपरा?*
शाही स्नान की परंपरा का उल्लेख हिंदू धर्म में कहीं नहीं मिलता है। ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार इस परंपरा की शुरुआत 14-16 वीं शताब्दी के बीच हुई थी। इस दौरान देश पर मुगल शासकों का राज चल रहा था। साधुओं और मुगलों के बीच अक्सर अनबन देखने को मिलती थी। इसके समाधान के लिए एक बैठक बुलाई गई, जिसमें दोनों ने एक-दूसरे के धर्मों का सम्मान करने की कसमें खाईं। इस नई पहल की शुरुआत शाही स्नान से हुई।
*क्या होगा शाही स्नान का नया नाम?*
हालांकि अब ध्यान मूर्ति महाराज के साथ साथ कई संत शाही स्नान का नाम बदलने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि ‘शाही’ शब्द का ताल्लुक सनातन धर्म से नहीं है। इसलिए इसका नाम बदलकर अमृत स्नान किया जाना चाहिए।