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50 डिग्री तापमान में तपता रेगिस्तान,खाने को हरा एक पत्ता नहीं,पानी की तलाश में भटकते सांसे टूट जाती है

दी डिज़र्ट फोटो ग्राफी मे सोशल मीडिया पर शेयर की तस्वीर ओर देखिये क्या लिखा।

50 डिग्री तापमान में तपता रेगिस्तान,खाने को हरा एक पत्ता नहीं,पानी की तलाश में भटकते सांसे टूट जाती है ओर ऊपर से पानी के स्रोत पर जायें तो घात लगाये बैठे कुत्ते मार रहे हैं।सड़क पर रौंदती गाड़ियाँ,बिजली के गिरते तारों मे करंट से मौत,प्रदूषित होती नदियाँ का केमिकल पीने को मजबूर,पग पग पर जाली तारबंदी पत्थर की दीवारें,सोलर ओर विंडमिल के कारण ख़त्म होता आवास,ओरणो पर क़ब्ज़ा करते इंसान,जगह जगह अवैध खनन से ख़त्म होता ओरण,खुलेआम शिकार करते शिकारी।विकास योजनाओं में छीन रहे आवास।

व्यथा ये सुना नहीं सकते,धरना ये दे नहीं सकते,वोट इनका लगता नहीं इसलिए वन एवं पर्यावरण मंत्री उफ़ तक नहीं करते।हर रोज एक पेड लगाने का ठोंग शुरू कर दिया ओर बस हो गई इतिश्री।ना पब्लिक कुछ बोलती है ओर ना राजनीति में चापलूस बना मीडिया।पिछले दस बीस सालों मे 90% तक हिरणों की संख्या घट गई है लोग सरकार ज़िम्मेदार सब तमाशा देख रहे हैं।एक सुखराम मंत्री बणे थे वो भी धोक्का दे गये।बरसात आने वाली है एक महीने में हज़ारों हिरण फिर मरेंगे आंखो के सामने।थोड़ी सी गर्मी बढी तो करोड़ों खर्च करके तैयारिया पहले की गई सड़कों पर पानी छिड़काव ओर चौराहो पर टेंट लगा छाया की गई।पर इनकी मौत का जाल सरकार खुद बुन रही हैं किसानों को जाली तारबंदी पर सब्सिडी दे रही हैं जबकि इनके लिये कोई गाइडलाइन तक किसानों को जारी नहीं की गई। आखिर कब तक मरता रहेगा ये अबोल जीव।पेड़ों के लिए 363 का बलिदान देने वाला बिश्नोई समाज का भी खून शायद अब ठंडा पड़ चुका है वरना ये यूँ नही मरते।जांभोजी के अनुयायियों आपसे उम्मीद है ओर आप ही उम्मीद है इन वन्यजीवों की सब समाज को साथ लेकर भिड़ जाइये इन पापी सरकारों से।अलग अलग जगह आप लड़ते आयें हैं पर संगठित होकर एक बड़ा आंदोलन लड़ने की ज़रूरत है।आने वाली बरसात में हज़ारों हिरण कुत्ते नोचें उससे पहले अपने नेताओं को साथ लेकर हिरणों के लिए तैयारिया कीजिए जीव जंतु बोर्ड के अध्यक्ष केमिकल पीते हिरणों को आंखो से देख के निरीक्षण तक करने नहीं आये किस बात के लिए अध्यक्ष हो।आंखो का पाणी मर गया है साहब आपके ओर इन नेताओं के।

युवा साथियों ग़ुस्से मे दांत कड़कड़ाकर लिख रहा हूँ इसलिए हो सकता है कुछ शब्द कड़वे लगे आपको पर माफ करना मेरे से ये दर्द सहा नही जा रहा अब।बारिश मे होने वाली मौतों को देखने की हिम्मत अब नहीं है।बंधुओ आओ इनकी आवाज बने।आखिर कब तक?

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