काबा किस मुंह से जाओगे ग़ालिब, शर्म तुमको मगर नहीं आती!!
(आलेख : राकेश पाण्डेय)
विनेश फोगाट फाइनल में पहुँच गयी हैं – अब तक के मुकाबलों में जो तेज और ओज, ऊर्जा और विवेक उन्होंने दिखाया है, उसे देखते हुए पूरी संभावना है कि वे 50 किलोग्राम के वर्ग में स्वर्ण पदक जीतकर ही आयेंगी। वैसे अभी भी वे उस मुकाम पर पहुँच चुकी हैं, जहां तक आज तक ओलंपिक्स में कोई भारतीय लड़की नहीं पहुंची ; रिकॉर्ड तो बन ही चुका है। चंद चिरकुटों, यौन दुराचारियों और काम-कुंठितों को छोड़कर पूरे देश को विश्वास है कि यह रिकॉर्ड भी टूटेगा और विनेश नया रिकॉर्ड बनाएंगी। पूरा देश – कुश्ती का क तक न जानने वाले हम जैसे नागरिक भी – उनकी इस उपलब्धि पर आल्हादित हैं, इस कदर खुश हैं कि कल बजरंग पूनिया द्वारा बोले गए शब्दों के कहें, तो यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि हँसे या रोयें!! ऐसा तब होता है, जब ख़ुशी की चरम अवस्था होती है – अभी परम का आना बाकी है।
लेकिन अभी तक एक्स्ट्रा 2 ए बी की तरफ से कोई बधाई सन्देश नहीं आया। ऐसा बहुत कम होता है, जब दूसरों की मेहनत में से सिरीमान जी अपने लिए एक्स्ट्रा घी निकाल कर न पीयें!! मगर इन पंक्तियों के लिखे जाने तक वे सुट्ट लगाए बैठे हैं। और तो और, खेल मंत्री भी नहीं ट्विटियाये। ऐसा लग रहा है, जैसे विनेश ने क्यूबा की युवती को नहीं, इन्हें ही पटखनी दी है। वैसे यदि ऐसा लग भी रहा है, तो ठीक ही लग रहा है, क्योंकि ओलंपिक खेलों के मुकाबले कहीं ज्यादा कठिन लड़ाई विनेश और उनकी साथी महिला पहलवानों ने जंतर मंतर पर लड़ी थी ; लातें, थप्पड़, लाठियां खाईं थीं, उनसे अधिक तकलीफ और पीड़ा देने वाली गालियाँ खाई थीं। सिर्फ यौन दुराचारी भाजपा सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह ही इन पर नहीं लपका था ; संस्कारी पार्टी की पूरी फ़ौज और उसमे शामिल औरतें भी सारी लाज-शर्म-हया छोड़कर इन्हें भंभोड़ने के लिए झपट पड़ी थी, गरिया रही थीं।
क्या क्या नहीं कहा था इन असभ्यों ने ; विनेश को चुकी हुई खिलाड़ी बताया, विपक्ष की कठपुतली बताया, दूसरों से पैसा लेकर आन्दोलन करने वाला बताया। जैसे यौन दुराचार ही इनके लिए राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक हो, इस भाव से इनके आन्दोलन को ‘राष्ट्रीय गौरव’ और दुनिया भर में भारत की प्रतिष्ठा को धूमिल करने वाला राष्ट्रद्रोही बताया। इतना आहत किया कि साक्षी मलिक को अपने जूते उतारकर इन्हें भेंट करने के लिए विवश कर दिया। बाकी जंतर मंतर पर इनके साथ कब कब, क्या क्या हुआ, यह जो थोड़े से भी मनुष्य हैं, उन्हें अच्छी तरह से याद होगा, इसलिए दोहराने की आवश्यकता नहीं ; जिन्हें याद नहीं है, उनके लिए दोहराने का कोई मतलब नहीं ; उन पर सिर्फ रहम किया जा सकता है।
अभी कुछ रोज पहले मई महीने में जब दुनिया भर के खिलाड़ियों की तरह भारत के खिलाड़ी भी तैयारी में जुटे थे, तब भी शाखा शृगाल और उनकी आई टी सैल विनेश फोगाट को जलील करने, उनके खिलाफ अभद्र और अश्लील बातें करने में भिड़ी थी। क्षुब्ध होकर खुद विनेश फोगाट को कहना पडा था कि : “जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन बंद करने के बाद भी हम पहलवानों की आलोचना जारी है। ऐसा तब भी होता है, जब मैं अभी प्रतिस्पर्धा कर रही होती हूँ। मैं 53 किलोग्राम वर्ग का ट्रायल नहीं जीत पाई, क्योंकि मैं 50 किलोग्राम पर ध्यान केंद्रित करना चाहती थी। मैंने 53 किलोग्राम वर्ग के ट्रायल में पूरी ताकत नहीं लगाई। इसके तुरंत बाद आईटी सेल मेरे पीछे पड़ गया।”
ये कितने असभ्य हैं, इस बात का उदाहरण विनेश की एतिहासिक जीत पर एक्स्ट्रा 2 ए बी की चुप्पी और उनकी एक सांसद की टिप्पणी से समझा जा सकता है। मोहतरमा क्या बोली हैं, इसे दोहराकर सुबह खोटी करने का कोई अर्थ नहीं। यह मानना बचपना होगा कि उनका बयान किसी कुपढ़, असभ्य और बचपन में ही भेड़ियों द्वारा उठाकर ले जाई गयी व्यक्ति का बयान है ; इस गिरोह में अपने मन से कभी कोई नहीं बोलता।
हमारे एक मित्र और पड़ोसी थे, जो भाजपा की आई टी सैल की शैशवावस्था से ही इसके साथ जुड़े थे। अब आज के आई टी सैलिये माने या न माने, मगर सच यह है कि वह प्रचार तंत्र, जो आज भाजपा की मुख्य शक्ति है, उसकी वर्तनी और वर्णमाला इन्ही ग्वालियरी बिहारी बाबू ने तैयार की थी। यह तब की बात है, जब मोबाइल और व्हाट्सएप्प नहीं था। वे अभी कुछ ही दिन पहले स्मृति शेष हुए हैं। प्यारे और खरे इंसान थे, उनका नाम लिखने की आवश्यकता नहीं – समझने वाले समझ जायेंगे। एक बार हमने एक भाजपा नेता, जिनके भाषा दारिद्रय, शब्द कुपोषिता और लिपि कृपणता से सब भलीभांति परिचित थे, का एक बड़ा सुगठित, सुव्यवस्थित वक्तव्य अखबार में पढ़ा। उनके इस नए अवतार पर चकित हो गये। संयोग से उसी दिन इन स्मृति शेष मित्र से मुलाक़ात हो गयी। हमने उनके साथ अपना आश्चर्य साझा किया कि फलाने तो काफी परिपक्व हो गए हैं ; वे हंसकर बोले कि फलाने को ….. से फुर्सत मिले, तब वे कुछ सीखें साखें, ये सारे बयान तो एक जगह बैठकर लिखे जाते हैं, फैक्स से भेजे जाते हैं, कार्यालय प्रभारियों से लगवाए जाते हैं, जिनके नाम से छपते हैं, उन्हें भी अखबार में छपने के बाद ही पढ़ने को मिलते हैं!! फलाने ने भी अखबार में ही पढ़ा होगा!!
मतलब यह कि ये जो मोहतरमा बेबी बोली हैं, वह एक्स्ट्रा 2 ए बी की ही खीज है। हालांकि एक्स्ट्रा 2 ए बी को भी कम करके नहीं आंकना चाहिए। वे लिपे-पुते में कचरा बगराये बिना मानेंगे नहीं। जैसे 16 अगस्त 2021 को खिलाड़ियों के साथ फुटवा खिंचाया था, इस बार भी तस्वीर खिंचाये बिना मानेंगे नहीं : उनकी जान फोटू में ही बसती है।
कायदे से उन्हें और उनके कुनबे को जंतर मंतर पर आकर घुटनों के बल बैठकर बिनेश और साक्षी और पूरे देश से हाथ जोड़कर माफी मांगनी चाहिए ; मगर वे ऐसा करेंगे नहीं !! वे ग़ालिब नहीं हैं कि काबा किस मुंह से जायेंगे, के पशोपेश में पड़ें, वे जाहिल भी नहीं हैं ; वे अपने विचार का मूर्तमान प्रतीक – बर्बर – हैं!!
*(नोट : यह आलेख विनेश को ओलंपिक फाइनल में अयोग्य घोषित करने से पहले लिखा गया है और संदर्भ पूरी तरह प्रासंगिक है।)
(लेखक ‘श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के सदस्य है। संपर्क : 9451189168)