नई दिल्ली (सुषमा रानी )7 अगस्त को सफदरजंग अस्पताल के बाल रोग विभाग में बाहरी शिशुओं के लिए मातृ-नवजात गहन देखभाल इकाई का उद्घाटन स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के सचिव और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डॉ. राजीव बहल और सफदरजंग अस्पताल की चिकित्सा अधीक्षक डॉ वंदना तलवार द्वारा किया गया था।
दुनिया भर में, बीमार नवजात शिशुओं को उनकी माताओं से अलग करना और उन्हें नवजात गहन देखभाल इकाई (एनआईसीयू) में स्थानांतरित करना एक स्थापित प्रथा है। इसलिए माताएं घर पर रहती हैं या अस्पताल के लाउंज में इंतजार करती हैं। परिणामस्वरूप, केवल कुछ ही अपने शिशुओं की देखभाल के लिए नवजात इकाइयों में आ पाते हैं। उन्हें केवल एक आगंतुक के रूप में रुक-रुक कर ऐसा करने की अनुमति है, न कि देखभाल करने वाले के रूप में। परिणामत:, शिशुओं को अपनी मां के स्तनपान और कंगारू मदर केयर (केएमसी) (मां के साथ त्वचा से त्वचा का संपर्क) की बहुत जरूरत नहीं होती है। निम्न-मध्यम आय वाले देशों में नर्स शिशु अनुपात कम होने के कारण अक्सर इन शिशुओं में क्रॉस संक्रमण का खतरा अधिक होता है। सफदरजंग अस्पताल का बाल-रोग चिकित्सा विभाग देश का पहला तृतीयक देखभाल केंद्र है, जिसने 15 बिस्तरों वाले स्तर-3 (तृतीयक स्तर) एनआईसीयू में बाहरी शिशुओं के लिए मातृ-नवजात गहन देखभाल इकाई (एम-एनआईसीयू) सेवाएं शुरू की हैं।
‘मदर इन एनआईसीयू’ एक ऐसी सुविधा है जहां बीमार नवजात शिशुओं की देखभाल उनकी माताओं के साथ 24 × 7 के आधार पर की जाती है, और बीमार नवजात शिशुओं और प्रसवोत्तर माताओं के लिए सभी उचित देखभाल प्रदान की जाती है।
डॉ. राजीव बहल, सचिव, डीएचआर और डीजी आईसीएमआर ने कहा, ‘मां और उसके बीमार शिशु को एक साथ रखने से लंबे समय तक और प्रभावी केएमसी के अवसर बढ़ जाते हैं, जो मृत्यु दर को कम करने और जल्दी तथा निरंतर स्तनपान कराने के लिए एक सिद्ध हस्तक्षेप है’। उन्होंने यह भी कहा कि इससे समय से पहले जन्म लेने वाले और छोटे शिुशुओ के लिए नवजात गहन देखभाल के तरीके में क्रांतिकारी बदलाव आएगा। बाल-रोग चिकित्सा विभाग में किए गए शोध अध्ययन से पता चला है कि, मातृ-एनआईसीयू में मां और शिुशु को एक साथ रखने से जीवन के 28 दिनों में मृत्यु दर 25% कम हो गई है, साथ ही हाइपोथर्मिया (ठंड लगना) की घटनाएं 35% कम हो गई हैं। एनआईसीयू में मां की उपस्थिति के साथ संक्रमण वृद्धि की चिंता भी गलत साबित हुई क्योंकि पारंपरिक एनआईसीयू में देखभाल किए गए नियंत्रित शिशुओं की तुलना में एम-एनआईसीयू सेटिंग में नवजात शिशुओं में 18% कम संक्रमण था। अध्ययन के परिणाम मई, 2021 में उच्च प्रभाव वाले न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित किए गए थे।
सफदरजंग अस्पताल की चिकित्सा अधीक्षक डॉ. वंदना तलवार ने कहा, ‘माताओं को अपने बीमार नवजात शिशुओं के साथ चौबीसों घंटे रहने में सक्षम बनाने के लिए, माताओं को नवजात गहन देखभाल इकाई (मातृ-एनआईसीयू अवधारणा) के भीतर बुनियादी सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं जिनमें भोजन, बिस्तर, शौचालय आदि शामिल हैं)’। माताओं की किसी भी चिकित्सीय समस्या के लिए उन्हें प्रसूति विशेषज्ञ की देखभाल प्रदान की जाती है। इस पहल को अस्पताल के बजट प्रावधान के माध्यम से समर्थित किया गया था। नवजात गहन देखभाल के लिए उपकरण, मां के लिए भोजन और केएमसी स्थिति में मां शिशु को एक साथ रखने के लिए कपड़ों सहित बुनियादी ढांचा और आपूर्ति अस्पताल द्वारा प्रदान की जाती है।
सफदरजंग अस्पताल के बाल रोग विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. रानी गेरा ने कहा, ‘सफदरजंग अस्पताल में मातृ-एनआईसीयू बनाना मां-शिशु युग्म की सम्मानजनक देखभाल की दिशा में एक प्रभावी कदम है’ और इससे शिशुओं में संक्रमण दर कम होने के साथ-साथ माँ और शिशु के बीच संबंध में भी सुधार होगा।