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औरंगजेब ने हिन्दू सहिष्णुता की पोल खोल दी

औरंगजेब को औरंगाबाद में दफन हुए 318 साल हो गये, एक मुस्लिम जो समाजवादी नेता उसने उस औरंगजेब को सहिष्णु क्या बता दिया भारत में सभी खबरी चैनल उस पर पिल पड़े , FIR दर्ज होने लगी, औरंगजेब को असहिष्णु बताने के लिये सिख गुरुओं की मिसालें देने पर उतारू हो गये और सिख चुप , हालांकि एक सिख भाजपा प्रवक्ता को न्यूज 24 पर देखा , उससे सवाल एंकर ने औरंगजेब के बारे में पूछने में गुरेज किया हालांकि जैसा मैं उन्हें जानता हूँ एक गुरूद्वारा में उन्होंने मोदी जी के जन्म के उपलक्ष में अरदास का भी आयोजन किया परंतु बहस हो गयी , विवरण तो वही दे सकते हैं, हालांकि पता चला उस समाजवादी नेता ने कहा जाता है माफी मांग ली पर RSS और भाजपा के हाथ में तो औरंगजेब जैसा लड्डू वे उसे क्यों छोड़ दें , लपक लिये चर्चा के लिये लगातार यह माहोल देश में बना दिया कि मुस्लिम को निशाने पर लो कहा जाता है हिन्दू संगठित हो जाता है ,यह समझ से परे उनसे क्या दुशमनी जिनका 4 फीसद ही गदेलों का आनन्द लेता हो देश का 14 फीसद तो किस हाल में वह सच्चर कमेटी ने बता दिया था जिसके लिये मनमोहन सिंह तत्कालीन प्रधान मंत्री को भी नहीं बख्शा गया था , क्या कमाल है जो भाजपा और RSS वसुधैव कुटुम्बकम की बात करती नहीं थकती हिन्दू को भी वह यही मान रही है वह भी औरंगजेब को सह नहीं पा रही l अफसोस सिख चुप्पी धारण किये हैं क्योंकि बाबर से औरंगजेब और गुरु नानक से गुरु गोबिंद साहिब तक का इतिहास समकालीन है , यह सिखों को बताना चाहिये था , वे चुप क्यों? सिखों को मुगल काल के बारे में बताना चाहिये था लगता है उन्होंने कहीं भाजपा / RSS को ही अपना प्रतिनिधि तो स्वीकार नहीं कर लिया यही बता देते पर उनके पास कहां समय वह तो अकाली दल के अस्तित्व को मिटाने पर लगे हैं न रहेगा बांस न बजेगी बाँसुरी ताकि सिखों की प्रतिनिधि आवाज़ को ही मिटा दिया जाये , फिर भी बात तो कर ही लें ;

1. यदि हिन्दू के साहित्यिक अर्थ हैं वे गुरु नानक ने दिये जो गुरू ग्रंथ साहिब में अंकित ” हिन्दू वही जो जातिवाद और मूर्ति पूजक ” अब आप तय करें उस अनुसार हिन्दू का संख्याबल कितना है l

2. गुरू नानक ने बाबर के हमले को खुद अपनी आंखों से देखा, उस हालात को ब्यान करते समय अपने सबसे अधिक दिल के गहराईयों से भायी लालो को सम्बोधित करते हुए बताया ” जैसी मैं आवे खसम की बानी वही बता रहा हूँ ” मंत्र फूंक दिये यह बताया गया मुगल अंधे हो जाएंगे पर देखा कोई मुगल अंधा ही न हुआ किसी का जादू ही नहीं चला , हालांकि उस समय भी हिन्दोस्तान पर काबिज मुस्लिम हुक्मरान ही लोधी वंस था , गुरू नानक को जेल में डाल दिया गया परंतु जल्दी ही रिहा हो गये उन्होंने कहा हिन्दोस्तान समालसी बोला , यहीँ नहीं बाबर और नानक के सम्बंध मित्रवत ही रहे , क्या यह गलत है ?

3. जब हमायूँ शेर शाह सूरी से हार कर निकला वह सीधा गुरु अंगद के पास गया जहां उन्होंने उसे सांत्वना दी यह समय भी बीत जायेगा वही हुआ , क्या यह कहना गलत है ?

4. क्या यह कहना गलत है कि अकबर ही था जो गुरु अमरदास, सिखों के तीसरे गुरु , के पास जब लंगर की व्यवस्था देखी और लंगर में ही भोजन किया इतना प्रभावित हुआ कि उनकी बेटी के नाम पर कहते हैं 85 गांव लगा दिये , यह दीनी इलाही का संकल्प उसी का नतीजा

5.क्या यह गलत है कि दरबार साहिब (हरिमंदिर) जिसकी नींव शाही पीर मियां मीर ने रखी , उसकी वास्तुकला इसलामिक उसके चार दरवाज़े होते हुए भी आने जाने का एक ही रास्ता जो पश्चिम की ओर प्रकाश गुरु ग्रंथ जो ज्ञान का सागर जिसमें 6 गुरुओं, 15 क्रान्ति कारी भक्तों की वाणी, इसलिये सिख मूर्ति पूजक नहीं ज्ञान को सजदा करता है

6. क्या यह कहना गलत है कि हिंदुओं को नेतृत्व सिख गुरुओं ने प्रदान किया , क्योंकि हिन्दू का उच्च वर्ग तो मुगल प्रशासन को चलाता था , वही हिन्दुओ को मुगल शासन के प्रति वफादार भी , परंतु जो हिन्दू उस व्यवस्था से बाहर उनका नेतृत्व तो गुरुओं ने ही किया , अकाल तख्त की सृजना क्यों हुई ? उसका कारण जब जहांगीर ने हुक्म आयिद किया कि कोई भी राजा कलगी नहीं सजा सकता , घोड़े की स्वारी नहीं कर सकता , तख्त पर बैठ कोई फैसले नहीं जारी कर सकता , मैं बादशाह और तुम प्रजा नतीजा गुरू हरगोविंद ने अकाल तखत को स्थापित किया , घोड़े और घुड़ स्वार फौज की भर्ती की केसरिया निशान झुला दिया उसी कारण उनको ग्वालियर के किले में बन्दी बना दिये गये, पूरे हिन्दुस्तान में आंदोलन हो गया नतीजा सायीं मीर की सलाह से मुगल सल्तनत में शायद यह पहला कदम था जब उस आदेश को वापिस लेना पड़ा और गुरू हरगोविंद के साथ सभी हिन्दू राजाओं को रिहा करना पड़ा जबकि उससे पहले उसी जहांगीर के समय गुरू हरगोविंद के पिता गुरू अरजन को शहीद किया गया , यहां यह समझना ज़रूरी है कि उनके खिलाफ शिकायत गुरु अरजन का भायी प्रिथी चन्द ने की थी और सजा की कार्यवाही शाही वजीर चन्दू ने की थी यही बस नहीं गुरु अरजन पर हथियार बन्द फौज को लेकर बीरबल ने हमला किया था, जबकि जब गुरू हरगोविंद रिहा हुए तो जहांगीर के साथ मित्रवत सम्बंध रहे l

7. क्या यह कहना गलत है कि यदि गुरु हरगोविंद पर बादशाही फौज ने हमला शाहजहां के समय किया गया जबकि जहांगीर ने कभी उन के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की थी जबकि समर्थ रामदास महाराष्ट्र से जब उनको मिलने आये और सवाल गुरु नानक विचार को लेकर संवाद किया तो गुरु हरगोविंद ने उनको समझाया ” पुत्र निशान है, दौलत गुजरान और पत्नि ईमान ” उसी का कारण यह समझा जाता है शिवाजी को अगुवाई मिली , यह भी समझ लेना होगा कि यह गुरू हरगोविंद ही थे जिन्होंने अमृत्सर से दूर हिमालय की तलहटी में कीरत पूर को बसाया था , हो सकता हो कि यह अंदेशा कि सत्ता के साथ मुकाबला होगा l

8. अगर औरंगजेब जालिम था तो क्या मैं पूछ सकता हूँ गुरू तेग बहादर के प्रचार दौरे औरंगजेब के शासन काल में ही , यहां तक उनसे पहले गुरु हरकिशन साहिब को दिल्ली बंगला साहिब जो राजा राम सिंह जो सेनापति मुगल शासन का था उसी ने यह व्यवस्था ठहरने के लिये की थी , जब गुरु साहिब की फौत ( ज्योति जोत समा ) हो गयी तो औरंगजेब ने ही यमुना नदी के किनारे अब बाला साहिब गुरूद्वारा संसकार की व्यवस्था क्यों की ?

9. अब मैं उस सवाल पर जो चैनलों पर TRP का मसौदा बनाया गया , यह गुरु तेग बहादर ही थे जिनके कारण वृह्द हिन्दोस्तान की स्थापना हुई , राजा राम सिंह ने शिवाजी के बेटे सम्भा जी को जेल से रिहा करवा दिया औरंगजेब को गुस्सा था परंतु राजा जय सिंह का वह बेटा था इसलिए उसको असम की मुहिम पर भेजना ही उसका कारण क्योंकि कभी भी मुगल सल्तनत उसे जीत नही सकी थी और यही रास्ता उत्तर पूर्वी को कब्जाने का भी , जैसे ही यह हुआ उसे इस पर भेज दिया गया , क्योंकि राजा राम सिंह यह जानता था कि गुरुओं के सम्बंध असम राज सत्ता से रहे हैं वह सीधा पटना बिहार जहां गुरु तेग बहादर उन दिनों थे उनके पास जाकर इस व्यथा को बताया वहीँ से गुरु तेग बहादर उनके साथ चल दिये और राजा चक्रधवज जो असम का राजा था उसके साथ संधि करवा दी गयी और हिन्दोस्तान के साथ 7 उत्तर पूर्वी राज्यों का विलय हो गया जिससे वृह्द हिन्दोस्तान वहीँ से गुरु तेग बहादर ढाका भी गये वहां आज भी वह स्थान गुरूद्वारा है , तो क्या गुरुओं का कोई विवाद औरंगजेब के साथ था यह तो कहा जा सकता है कि गुरुओं ने आजादी के संघर्ष को आगे बढ़ा दिया और मुगल सल्तनत भी यह समझ रही हो l

10. गुरू तेग बहादर जब वापिस पंजाब आए तो उन्होंने पहला किला आनन्द गढ़ स्थापित किया यह समझा जाने लगा कि मुगल सत्ता को यह चुनौती भी , अब यह कहना कितना हास्यास्पद है कि उनके बारे में कश्मीर के ब्राह्मणों को पता नहीं था वे पहले अमरनाथ गये वहां उनको आवाज़ आयी कि उनकी रक्षा गुरु तेग बहादर आनन्दपुर साहिब ही कर सकते हैं तभी वे गुरु तेग बहादर के पास आए जबकि यह सर्व विदित कि हिन्दुओं का नेतृत्व गुरुओं के पास ही था , कोई औरंगजेब की हकुमत से वारंट नहीं था वे खुद चल पड़े, आज भी पटियाला के पास बहादर गढ़ का किला सूबेदार पंजाब का था उन दिनों बरसातों का समय था गुरु साहिब उसी किले में रुके आज भी उस किला में एक तरफ मसजिद और दूसरी ओर गुरूद्वारा स्थित है , यदि औरंगजेब इतना ही जालिम था तो यह कैसे हो गया ?

11. वहीँ से चल कर वे रोहतक पहुंचे यहां से अलग अलग कथायें व्याप्त हैं कि पूरे देश में विद्रोह की स्थिति बनती चली गयी , इसी कारण उनको बन्दी बना लिया गया, यह भी कहा जाता है वहां से उनको आगरा ले जाया गया और फिर दिल्ली जहां उनको शहीद कर दिया गया और बादशाही ਠੇਕੇ दार लखी शाह वंजारा ने उनका संस्कार अपने निवास जहां गुरूद्वारा रकाबगंज स्थापित है वहां किया गया

12. गुरू गोबिंद सिंह गुरू स्थापित कर दिये गये , इसमें कोई शक नहीं महाराष्ट्र से शिवाजी ज़िंका उदय भी गुरु ह्रगोबिन्द के कारण और इधर पंजाब में सत्ता के विरूद्ध गुरू गोबिंद सिंह ने हिन्दू राजाओं को संगठित करना शुरू कर दिया , अफसोस हिन्दू जातिवाद के बंधन से संचालित होता है परंतु जब गुरू साहिब ने जाति उन्मूलन की व्यवस्था खालसा के तौर पर स्थापित करने का कदम उठाया वही हिन्दू राजाओं ने उन पर हमला कर दिया , मुगल फौज ने उन राजाओं की मदद की ओर बढ़ गयी , जब राजाओं ने कसमें उठायी तो जैसे ही गुरु साहिब ने आनन्द पुर साहिब छोड़ा जो कसमें उठा रहे थे उन्होंने कसमें तोड़ कर गुरु साहिब पर हमला कर दिया ऐसे हालात से गुरू साहिब का परिवार बिछुड़ गया वहीँ से उन्होंने अपनी मां और छोटे साहिबजादों को गंगु पर विश्वास करते हुए भेज दिया और खुद अपने साथियों के संग खान चौधरी रोपड़ की हवेली ज़िसने उनकी मदद की वहीं से वे चमकौर गढ़ी में वहीँ से उन्होंने फौज का मुकाबला किया वहां से जैसे ही निकले उनको उच्च का पीर के तौर पर गनी खां और नबी खां दोनों भायी उनको अपने गांव अलामगीर ले गये ताकि गुरु साहिब को कोई तकलीफ न हो दूसरी ओर गंगु ने उन छोटे साहिब ज़ांदों और गुरू साहिब की माता को कोतवाल के सुपुर्द कर दिया ज़िसने सरहंद के सूबेदार के हवाले जहां उनको जब पेश किया गया तो मलेर कोटला का नवाब walk out कर गया जबकि सुचा नन्द जो वजीर था उसने यह कह कर सनसनी फैला दी साँप के बच्चे साँप नतीजा उनको सुच्चा नन्द के हवाले कर दिया ज़िसने उनको उसी के हवाले सजा को execute करने के लिये दे दिया , यह वही था ज़िसने उनको दीवार में चिनवा दिया , क्या यह कहना गलत है , जैसे ही इस सब की रपट औरंगजेब को मिली उसने गुरू गोबिंद सिंह को निमंतृत किया और गुरु गोबिंद सिंह दिल्ली जो मोची बाग अब मोतीबाग गुरूद्वारा स्थित है, अचानक औरंगजेब उस समय दक्षिणी-पश्चिमी में बग़ावत को दबाने गया वहीँ उसकी फौत हो गयी तब बहादर शाह के साथ गुरू साहिब नांदेड़ ही रुक गये आज जहां गुरूद्वारा हजूर साहिब , यहीँ से गुरू साहिब ने बाबा बन्दा सिंह को कमान सम्भाल दी क्योंकि पीर बुद्धु शाह ने अपने अनुयायियों को गुरु की फौज में शामिल किया था उनके यहां भेजा जहां बाबा बन्दा सिंह ने खालसा राज की स्थापना की यहीँ से दौर शुरू हुआ आपसी संघर्ष का नतीजा 1799 में खालसा की सरिजना के 100 वर्ष के अन्तराल में सरकार ए खालसा की स्थापना महाराजा रंजीत सिंह ने कर दी l
मैं फैसला आप पर छोड़ता हूं औरंगजेब क्या था?

दया सिंह
9873222448

StarNewsHindi

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